भारत देश में पान की खेती लंबे समय से होती आ रही है. पान को खाने के साथ-साथ पान का उपयोग पूजा-पाठ में भी किया जाता है. पान में कई औषधीय गुण भी मौजूद होते हैं. देश के कई इलाकों में पान की खेती का बहुत महत्व है. अलग-अलग क्षेत्रों में पान की खेती अलग-अलग तरीकों से की जाती है. वैज्ञानिकों की मानें तो भारत में पान की 100 से ज्यादा किस्में पाई जाती हैं. पान की खेती से किसानों को भारी मुनाफा भी होता है. हालांकि पान की खेती के समय कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ता है
कैसे की जाती है पान की खेती- जाने
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किन इलाकों में अच्छी होती है पान की खेती?
पान की खेती उन इलाकों में अच्छी होती है जिन इलाकों में बारिश की वजह से नमी ज्यादा रहती है. इसलिए दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत के राज्य पान की खेती के लिए अनुकूल हैं. पान के पौधों को न्यूनतम 10 डिग्री तथा अधिकतम 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है. अधिक ठंड या गर्मी में पान की खेती को नुकसान पहुंच सकता है.
पान के पत्तों को अत्याधिक ठंड से बचाने के लिए नवंबर महीने के आखिरी सप्ताह या दिसंबर के पहले हफ्ते से छावनी करना शुरू कर देना चाहिए. छावनी से तापमान में गर्माहट पैदा होती है. वहीं, ठंड के दिनों में हल्की-हल्की सिंचाई जरूर करनी चाहिए, इससे मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है और पान के पत्तों को खराब होने से बचाया जा सकता है. इतना ही नहीं, पान की बेलों पर प्लेनोफिक्स का छिड़काव करके भी पान के पत्तों को गिरने से बचाया जा सकता है.
कैसे तैयार करें खेत-
पान की खेती हल्की ठंडी और छायादार जगहों पर अच्छे से हो पाती है. पान की फसल को उगाने से पहले उस खेत की अच्छी तरह जुताई कर दी जाती है. इससे खेत में मौजूद पुरानी फसले के अवशेष पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं. जुताई के बाद खेत को ऐसे ही खुला छोड़ दें. बरेजा बनाने से पहले आखिरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी कर लेना चाहिए. इसके बाद ही बरेजा का निर्माण करना चाहिए.
पान की खेती के लिए चूने से सीधी लकीरें खींचें और इन लकीरों पर एक मीटर के अंतराल पर तीन से चार मीटर बांस गाढ़ दें. अब बांस को चार मीटर चौड़ाई पर बांस की पिंचियो को बांधकर छप्पर जैसा बना दें. इसके बाद छप्पर को पुआल से ढकने दें. फिर बांस की छोटी-छोटी पिंचियों के सहारे इसे बांध दें, ताकि पुआल हवा में उड़ ना सकें. अब छत की ऊंचाई के बराबर इस मंडप के चारों ओर चारदीवारी की तरह टांट लगा दें. ध्यान रहे कि पूर्व दिशा की टांट पतली और उत्तर और पश्चिम की दिशाओं में मोटी तथा ऊंची बांधनी चाहिए. इससे लू का असर कम होगा. बांस से बांस की दूरी 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए ताकि आंधी तूफान में बरेजा को कोई नुकसान ना पहुंचे.
पान की खेती के लिए कैसे करें मिट्टी का उपचार—
बरेजा के निर्माण के बाद मानसून से पहले एक प्रतिशत मात्रा में बोडोमिशन से मिट्टी को उपचारित करें. मानसून खत्म होने के बाद दोबारा 0.5 प्रतिशत बोर्डो मिक्सचर को ट्राइकोडर्मा विरडी के साथ में मिलाकर छिड़काव करें. इससे पान की फसल में फाइटो थोरा फूट रूट की समस्या नहीं आएगी.
पान की रोपाई कैसे करें——
पान की रोपाई बेड की दो कतारों पर की जाती है. कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए. वहीं, पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए. पान की रोपाई फरवरी के आखिरी हफ्ते से मार्च के मध्य और जून के तीसरे हफ्ते से अगस्त तक की जाती है. कुछ इलाकों में मई में पान की रोपाई की जाती है.
कैसे करें पान की फसल की सिंचाई–
पान की फसल में मौसम के हिसाब से तीन से चार दिनों में ढाई घंटे के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए. बरसात के दिनों जरूरी हो तो हल्की सिंचाई कर दें. सर्दी के मौसम में पंद्रह दिनों के बाद सिंचाई करनी चाहिए.
अगर पान की खेती के वक्त सभी जरूरी बातों का ध्यान रखा जाए तो प्रति हेक्टेयर 100 से 125 क्विंटल पान की उपज हो सकती है. यानी औसतन 80 लाख पानों की पैदावार हो सकती है. जबकि दूसरे और तीसरे साल 80 से 120 क्विंटल की पैदावार होती है. यानी 60 लाख पत्तियों का उत्पादन होता है. बाजार में अच्छे भाव मिले इसके लिए जब पान मैच्योर हो जाए तभी बेचें. परिपक्व होने के समय पान के पत्ते पीले और सफेद हो जाते हैं. इस समय बाजार में भाव 180 से 200 रुपए ढोली मिल सकता है यानी एक पत्ते का 1 रुपया तक आपको मिल सकता है.