गोरखपुर। 'भोजपुरी संगम' की 150 वीं 'बइठकी' खरैया पोखरा, बशारतपुर स्थित संस्था कार्यालय में ओम प्रकाश पाण्डेय 'आचार्य' की अध्यक्षता की एवं अवधेश शर्मा 'नन्द' के संचालन में दो सत्रों में संपन्न हुई।
बइठकी के प्रथम सत्र में सुभाष चन्द्र यादव की प्रतिनिधि रचनाओं की समीक्षा की गई।
समीक्षा क्रम का आरंभ करते हुए डॉ.कुमार नवनीत ने कहा कि भाव व शिल्प से भरपूर सुभाष यादव जी का रचना संसार भोजपुरी साहित्य जगत में एक बड़े वितान का निर्माण करता है। एक मंजे रचनाकार के समस्त गुण इनमें हैं।
सुभाष चन्द्र यादव की रचनाओं में समसामयिकता की पुष्टि करते हुए डॉ.फूलचन्द प्रसाद गुप्त ने कहा कि भोजपुरी साहित्य में भोजपुरी मूल के ही शब्दों का प्राथमिकता के साथ प्रयोग होना चाहिए।
अतिथि समीक्षक मधुसूदन पाण्डेय ने सुभाष चन्द्र यादव को उत्कृष्ट रचनाकार एवं कुशल प्रस्तोता के रूप में रेखांकित किया।
बइठकी के द्वितीय सत्र में पूर्वांचल के अनेक कवियों ने प्रतिभाग किया जिनमें अधिकांश रचनाएं आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित रहीं। प्रमुखत: -
मधुसूदन पाण्डेय ने सुन्दर कजरी प्रस्तुत की-
अरे रामा अइले न पिया भवनवाँ,
सवनवाँ बीतल ए हरी।
सुधीर श्रीवास्तव ‘नीरज’ ने जीवन को परिभाषित किया-
चिटुकी भर ज़िनगी, अँजुरी भर सपनवाँ..
डॉ.कुमार नवनीत ने गंभीर सामाजिक संदेश देती हुई कविता से खूब वाहवाही बटोरी-
काठ करेजी भइल समइया पल-पल बदलत दाँव,
बिछिलायीं जनि धरीं थहा के आपन एकहक पाँव
सुभाष चंद्र यादव के देशभक्ति गीत ने माहौल को भावुक बनाया –
दे के कुरबानी, रखलें देसवा के पानी,
ओ जवानी के नमन
चंदेश्वर ‘परवाना’ ने देश की शान में सरस बनारसी कजरी प्रस्तुत की-
अमर भइलें देसवा के सान हो, दे के बलिदान हो, हो गइलें महान उ ललनवाँ।
ओम प्रकाश पाण्डेय ‘आचार्य’ ने अपने छंदों से बइठकी को अन्तिम आयाम दिया-
जीवन एक बगइचा जेमें,
दुई सुन्नर फूल बा देत देखाई।
एक के नाव बिचार हवे,
बेवहार दुसरका हवे मोर भाई।।
उपरोक्त के अलावा डा.बहार गोरखपुरी, गोपाल दूबे, अरविन्द 'अकेला', चन्द्रगुप्त वर्मा 'अकिंचन' ने भी अपने काव्य पाठ द्वारा 'बइठकी' को सार्थकता प्रदान की। संयोजक कुमार अभिनीत ने आगामी 'बइठकी' के विषय से सबको अवगत कराया।
इस अवसर पर धर्मेन्द्र त्रिपाठी, रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी, अजीत कुमार सिंह, डाॅ.विनीत मिश्र सहित अनेक लोगों की सक्रिय सहभागिता रही। अंत में वरिष्ठ दिवंगत साहित्यकार परमहंस मिश्र 'प्रचंड' को श्रद्धांजलि दी गयी।
आभार ज्ञापन संस्था के संरक्षक इं. राजेश्वर सिंह ने किया।
*सृजन गोरखपुरी*
*भोजपुरी संगम*